Navratri Fast : वैसे तो नवरात्रि में व्रत और उपवास का खास महत्व बताया गया है। लेकिन यह नवरात्रि के 9 दिन हर्षोल्लास और स्वच्छता के साथ विताए जाते हैं। इन 9 दिनों में सारे परिवार का माहौल भक्ति भाव में डूबा रहता है। और मां जगदंबा की आराधना करता रहता है।
Navratri Fast : व्रत और उपवास नवरात्रि के दौरान सनातन संस्कृति में विशेष महत्व रखते हैं। यह शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के विशिष्ट साधन माने जाते हैं। नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास रखना आध्यात्मिक संतुष्टि का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। लोगों की ईश्वरी शक्तियों के प्रति आस्था का भी प्रमाण देते हैं।
Navratri Fast : व्रत का अर्थ
Navratri Fast : समान्य भाषा में व्रत का अर्थ किसी विशिष्ट उद्देश्य को लेकर दृढ़तापूर्वक संकल्प करना होता है। जोकि शारीरिक और मानसिक संकल्प के साथ किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य आत्म संयम, भक्ति और श्रद्धा की भावना को बढ़ावा देना होता है।
Navratri Fast : उपवास का अर्थ
Navratri Fast : सामान्य भाषा में उपवास का अर्थ भोजन, जल और अन्य भोगों का त्याग करना होता है। जिसका उद्देश्य शारीरिक शुद्धि के साथ मानसिक और आत्मिक शुद्ध होता है।
Navratri Fast : व्रत के भाग
Navratri Fast : सनातन संस्कृति में व्रत को तीन भागों में बांटा गया है। इन व्रत के पालन से व्यक्ति को आत्म शक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है। व्रत के दौरान उपासक को सदा सत्य बोलना, पवित्रता बनाए रखना, किसी पर क्रोध न करना और अपनी ज्ञानइंद्रियों पर नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक होता है।
नित्य व्रत
Navratri Fast : नित्य व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जिन्हें उपासक प्रतिदिन या नियमित अंतराल पर आवश्यक रूप से करते रहते हैं। जैसे – किसी त्यौहार के व्रत
नैमित्तीक व्रत
Navratri Fast : नैमित्तिक व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जो किसी विशेष निमित्त परिस्थितियों के कारण किए जाते है। जैसे – किसी पाप के प्रायश्चित के लिए किया गया व्रत
काम्य व्रत
Navratri Fast : काम्य व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जो किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। जैसे – संतान प्राप्ति के लिए किया गया व्रत
Navratri Fast : व्रत की विशिष्टता
Navratri Fast : सनातन धर्म में व्रत का आचरण विशेष समय और स्थान पर होता है। प्रत्येक व्रत का अपना एक विशेष महत्व, विधि और नियम सनातन संस्कृति में वर्णित है। सभी व्रत का नियम अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उद्देश्य सिर्फ आत्म संयम, भक्ति और श्रद्धा भाव ही होता है। जैसे – एकादशी का व्रत 15 दिन में किया जाता है, नवरात्रि का व्रत 9 दिन किया जाता है, तीज का व्रत एक दिन का होता है लेकिन निर्जला होता है। इसी प्रकार सनातन संस्कृति में सभी व्रत की अलग-अलग नियम व विधियां है।
Navratri Fast : उपवास की विशिष्टता
Navratri Fast : वर्ष का शाब्दिक अर्थ होता है, कि भगवान की भक्ति भाव में लीन रहना। उपासक व्रत के दौरान भोजन, जल व अन्य किसी वस्तु का त्याग करता है। और भगवान की आराधना प्रसन्न मन से करता है। जिससे उसकी आंतरिक आत्मा शुद्ध बनी रहती है।
Navratri Fast : लाभ
Navratri Fast : आज के समय में व्रत और उपवास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों से ही हमारे शरीर को विश्राम मिलता है। और हमारी पाचन तंत्र साफ और स्वस्थ बना रहता है। जिससे आत्म नियंत्रण का विकास होने लगता है। यह मनुष्य जाति को संयमित जीवन जीने और मानसिक शांति प्रदान करने की अहम भूमिका निभाते हैं। जिससे उन्हें आत्मिक शांति के साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
Navratri Fast : हमारे सनातन धर्म में वर्णित व्रत और उपवास का महत्व सिर्फ पुराणों में अंकित ही नहीं है बल्कि आज के विकसित देश के वैज्ञानिकों ने भी इसके महत्व को जाना, समझा और परखा है। अतः हमें अपनी सनातन संस्कृति से गर्भ होना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नवरात्रि का व्रत रखने से क्या फायदा होता है?
उत्तर- समान्य भाषा में व्रत का अर्थ किसी विशिष्ट उद्देश्य को लेकर दृढ़तापूर्वक संकल्प करना होता है। जोकि शारीरिक और मानसिक संकल्प के साथ किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य आत्म संयम, भक्ति और श्रद्धा की भावना को बढ़ावा देना होता है।
प्रश्न- नवरात्रि उपवास के क्या फायदे हैं?
उत्तर- सामान्य भाषा में उपवास का अर्थ भोजन, जल और अन्य भोगों का त्याग करना होता है। जिसका उद्देश्य शारीरिक शुद्धि के साथ मानसिक और आत्मिक शुद्ध होता है।
प्रश्न- नवरात्रि में उपवास क्यों रखा जाता है?
उत्तर- आज के समय में व्रत और उपवास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों से ही हमारे शरीर को विश्राम मिलता है। और हमारी पाचन तंत्र साफ और स्वस्थ बना रहता है। जिससे आत्म नियंत्रण का विकास होने लगता है। यह मनुष्य जाति को संयमित जीवन जीने और मानसिक शांति प्रदान करने की अहम भूमिका निभाते हैं। जिससे उन्हें आत्मिक शांति के साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
प्रश्न- व्रत की विशिष्टता क्या हैं?
उत्तर- सनातन धर्म में व्रत का आचरण विशेष समय और स्थान पर होता है। प्रत्येक व्रत का अपना एक विशेष महत्व, विधि और नियम सनातन संस्कृति में वर्णित है। सभी व्रत का नियम अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उद्देश्य सिर्फ आत्म संयम, भक्ति और श्रद्धा भाव ही होता है। जैसे – एकादशी का व्रत 15 दिन में किया जाता है, नवरात्रि का व्रत 9 दिन किया जाता है, तीज का व्रत एक दिन का होता है लेकिन निर्जला होता है। इसी प्रकार सनातन संस्कृति में सभी व्रत की अलग-अलग नियम व विधियां है।
प्रश्न- उपवास की विशिष्टता क्या हैं?
उत्तर- वर्ष का शाब्दिक अर्थ होता है, कि भगवान की भक्ति भाव में लीन रहना। उपासक व्रत के दौरान भोजन, जल व अन्य किसी वस्तु का त्याग करता है। और भगवान की आराधना प्रसन्न मन से करता है। जिससे उसकी आंतरिक आत्मा शुद्ध बनी रहती है।
प्रश्न- व्रत के कितने भाग होते है ?
उत्तर- सनातन संस्कृति में व्रत को तीन भागों में बांटा गया है। इन व्रत के पालन से व्यक्ति को आत्म शक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है। व्रत के दौरान उपासक को सदा सत्य बोलना, पवित्रता बनाए रखना, किसी पर क्रोध न करना और अपनी ज्ञानइंद्रियों पर नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक होता है।
नित्य व्रत नित्य व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जिन्हें उपासक प्रतिदिन या नियमित अंतराल पर आवश्यक रूप से करते रहते हैं। जैसे – किसी त्यौहार के व्रत
नैमित्तीक व्रत नैमित्तिक व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जो किसी विशेष निमित्त परिस्थितियों के कारण किए जाते है। जैसे – किसी पाप के प्रायश्चित के लिए किया गया व्रत
काम्य व्रत काम्य व्रत वे व्रत कहलाते हैं, जो किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। जैसे – संतान प्राप्ति के लिए किया गया व्रत
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