Navratri Poojo Parampara : नवरात्रि के पा पर्व पर सारा देश मां दुर्गा के की आराधना में लीन हो जाता है। सारे देश के सनातन हिंदू धर्म के आस्थावान मनुष्य मां दुर्गा की आराधना और पूजा करते हैं। कुछ विशिष्ट राज्यों में नवरात्रि का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ विशिष्ट तरीके से भी मनाया जाता हैं।
Navratri Poojo Parampara : वैसे तो सारा भारत देश नवरात्रि के पावन पर्व में हर्षोल्लास में डूब जाता है। लेकिन बंगाल में नवरात्रि के इस पावन पर्व को विशिष्ट तरीके से बनाया जाता है। जो देश के किसी भी हिस्से में देखने को नहीं मिलता है। नवरात्रि के पावन पर्व में षष्टी से लेकर दशहरे तक इन पांच दिनों में पूरा बंगाल मां दुर्गा की स्तुति के रंग में रंग जाता हैं।
Navratri Poojo Parampara : “पूजो” परंपरा
Navratri Poojo Parampara : जब वर्षा ऋतु विदा ले लेती है और शरद की आगमन की आहट हो जाती है। बंगाल के निवासी सालभर नवरात्रि की प्रतीक्षा करते रहते हैं। बंगाल में तो “पूजो” का मतलब ही होता है मां दुर्गा की पूजा। जब नीले आकाश में श्वेत बादल छा जाते हैं। तब बंगाल में डाक ढोल बजने लगते हैं। और मां दुर्गा की आगमन की सूचना लेकर पूरे बंगाल में पूजा की गंध फैलने लगती है। बंगाल के मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में इस तरह व्यस्त हो जाते हैं, जैसे की कोई बच्चा अपनी प्रिय वस्तु को देखकर उसे पाने में लालायत हो जाता है। क्योंकि बंगालियों का सबसे बड़ा रोजगार का अवसर यही होता है।
Navratri Poojo Parampara : शारदोत्सव
Navratri Poojo Parampara : बंगाल में नवरात्रि के प्रथम पांच दिन शारदोत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । इस उत्सव के दौरान प्रत्येक बंगालियों के घर में सभी के लिए नए कपड़े व कुछ साथ सब्जा के सामान उपलब्ध किए जाते हैं। बंगाल के हर घर में मां दुर्गा की पूजा की तैयारी आरंभ कर दी जाती हैं। नवरात्रि के दौरान बंगाल की साज सज्जा इस प्रकार सज्जित हो जाती है कि वहां की प्रकृति स्वयं बयां कर देती है, कि उनकी मां दुर्गा का शुभ आगमन हो चुका है। और प्रकृति की देवी बंगाल को कई गुना निखार देती है।
Navratri Poojo Parampara : मां दुर्गा की पूजा का प्रथम दिन षष्ठी
Navratri Poojo Parampara : षष्ठी तिथि मैं स्वर्ग लोक से मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, कार्तिक और गणेश चार बच्चों सहित चलचित्र के माध्यम से भूलोक में पधारती हैं। चलचित्र मंडप में अनुपम साज सज्जा के साथ मां दुर्गा विराजमान दिखाई पड़ती हैं। सिंह पर सवार मां दुर्गा की 10 भुजा, 10 भुजाओं में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण की अनुपम छवि देखते ही बनती है। इस अनुपम छटा को मां दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी माना जाता है। ऐसे ही मां दुर्गा पूजा का प्रथम दिन षष्ठी कहा जाता है।
Navratri Poojo Parampara : पुष्पांजलि और भोग आरती
Navratri Poojo Parampara : बंगाल के निवासी सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन सुबह बड़े सवेरे उठकर मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए पूजा मंडप पर पहुंच जाते हैं। ब्राह्मणों के निर्देश अनुसार सभी बंगाल वासी अपने हाथों में फूल और बेलपत्र लेकर मां दुर्गा का मंत्र बोलकर मां दुर्गा को तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। प्रतिदिन सुबह-सुबह पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद दोपहर के समय भोग आरती की जाती है।
Navratri Poojo Parampara : धुनुचि नाच
Navratri Poojo Parampara : बंगाल में भोग आरती की सबसे बड़ी विशेषता धुनुचि नाच माना जाता है। इस नाच में बंगाल के सभी स्त्री पुरुष अकेले या समूह में अपने हाथों में धूप दान लेकर कलात्मक नृत्य करते हुए भाव विभोर होते हैं। मां दुर्गा को भोग आरती में 56 भोग अर्पित किया जाता है। इसके उपरांत मूल भोग का वितरण उपस्थित सभी बंगाल वासियो में कर दिया जाता है।
Navratri Poojo Parampara : अष्टमी की संधी पूजा
Navratri Poojo Parampara : बंगाल में मंडप के आयोजक और ब्राह्मण अष्टमी के दिन संधी पूजा का आयोजन करते हैं। इस पूजा में 108 कमल के फूल मां दुर्गा को अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही 108 दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। यह संधी पूजा लगभग 1 घंटे तक चलती है।
Navratri Poojo Parampara : सिंदूर का खेला
Navratri Poojo Parampara : विसर्जन के दिन सुहागन स्त्रियां मां दुर्गा के चरणों में सिंदूर अर्पित करती हैं। सुहागन स्त्रियां साल पर इसी सिंदूर का इस्तेमाल अपनी मांग भरने के लिए करते हैं। इसके उपरांत शुरू किया जाता है प्रसिद्ध सिंदूर खेला। इस परंपरा के अनुसार सुहागन स्त्रियां मांग व माथे पर सिंदूर लगाने के साथ दूसरी अन्य सुहागन स्त्रियों के चेहरे पर सिंदूर लगाकर “सिंदूर खेला” का आनंद हर्षोल्लास के साथ लेती हैं।
निष्कर्ष
Navratri Poojo Parampara : बंगाल में नवरात्रि की इस परंपरा को पूरे देश से भिन्न रखा है। बंगाल के निवासी नवरात्रि का त्यौहार बड़े प्रसन्नता के साथ मनाते हैं। उनकी यह “पूजो” परंपरा निरंतर चलती है। क्यों कि पूजो का अर्थ ही आनंद, उत्साह और एकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- दुर्गा मां की आंख कब खुलेगी?
उत्तर- षष्ठी तिथि मैं स्वर्ग लोक से मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, कार्तिक और गणेश चार बच्चों सहित चलचित्र के माध्यम से भूलोक में पधारती हैं। चलचित्र मंडप में अनुपम साज सज्जा के साथ मां दुर्गा विराजमान दिखाई पड़ती हैं। सिंह पर सवार मां दुर्गा की 10 भुजा, 10 भुजाओं में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण की अनुपम छवि देखते ही बनती है। इस अनुपम छटा को मां दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी माना जाता है। ऐसे ही मां दुर्गा पूजा का प्रथम दिन षष्ठी कहा जाता है।
प्रश्न- सिंदूर का खेला क्या है?
उत्तर- विसर्जन के दिन सुहागन स्त्रियां मां दुर्गा के चरणों में सिंदूर अर्पित करती हैं। सुहागन स्त्रियां साल पर इसी सिंदूर का इस्तेमाल अपनी मांग भरने के लिए करते हैं। इसके उपरांत शुरू किया जाता है प्रसिद्ध सिंदूर खेला। इस परंपरा के अनुसार सुहागन स्त्रियां मांग व माथे पर सिंदूर लगाने के साथ दूसरी अन्य सुहागन स्त्रियों के चेहरे पर सिंदूर लगाकर “सिंदूर खेला” का आनंद हर्षोल्लास के साथ लेती हैं।
प्रश्न- अष्टमी की संधी पूजा क्या है?
उत्तर- बंगाल में मंडप के आयोजक और ब्राह्मण अष्टमी के दिन संधी पूजा का आयोजन करते हैं। इस पूजा में 108 कमल के फूल मां दुर्गा को अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही 108 दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। यह संधी पूजा लगभग 1 घंटे तक चलती है।
प्रश्न- धुनुचि नाच क्या है?
उत्तर- बंगाल में भोग आरती की सबसे बड़ी विशेषता धुनुचि नाच माना जाता है। इस नाच में बंगाल के सभी स्त्री पुरुष अकेले या समूह में अपने हाथों में धूप दान लेकर कलात्मक नृत्य करते हुए भाव विभोर होते हैं। मां दुर्गा को भोग आरती में 56 भोग अर्पित किया जाता है। इसके उपरांत मूल भोग का वितरण उपस्थित सभी बंगाल वासियो में कर दिया जाता है।
प्रश्न- पुष्पांजलि और भोग आरती क्या है?
उत्तर- बंगाल के निवासी सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन सुबह बड़े सवेरे उठकर मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए पूजा मंडप पर पहुंच जाते हैं। ब्राह्मणों के निर्देश अनुसार सभी बंगाल वासी अपने हाथों में फूल और बेलपत्र लेकर मां दुर्गा का मंत्र बोलकर मां दुर्गा को तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। प्रतिदिन सुबह-सुबह पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद दोपहर के समय भोग आरती की जाती है।
प्रश्न- मां दुर्गा की पूजा का प्रथम दिन षष्ठी क्या है?
उत्तर- षष्ठी तिथि मैं स्वर्ग लोक से मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, कार्तिक और गणेश चार बच्चों सहित चलचित्र के माध्यम से भूलोक में पधारती हैं। चलचित्र मंडप में अनुपम साज सज्जा के साथ मां दुर्गा विराजमान दिखाई पड़ती हैं। सिंह पर सवार मां दुर्गा की 10 भुजा, 10 भुजाओं में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण की अनुपम छवि देखते ही बनती है। इस अनुपम छटा को मां दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी माना जाता है। ऐसे ही मां दुर्गा पूजा का प्रथम दिन षष्ठी कहा जाता है।
प्रश्न- शारदोत्सव क्या है?
उत्तर- बंगाल में नवरात्रि के प्रथम पांच दिन शारदोत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । इस उत्सव के दौरान प्रत्येक बंगालियों के घर में सभी के लिए नए कपड़े व कुछ साथ सब्जा के सामान उपलब्ध किए जाते हैं। बंगाल के हर घर में मां दुर्गा की पूजा की तैयारी आरंभ कर दी जाती हैं। नवरात्रि के दौरान बंगाल की साज सज्जा इस प्रकार सज्जित हो जाती है कि वहां की प्रकृति स्वयं बयां कर देती है, कि उनकी मां दुर्गा का शुभ आगमन हो चुका है। और प्रकृति की देवी बंगाल को कई गुना निखार देती है।
प्रश्न- “पूजो” परंपरा क्या है?
उत्तर- जब वर्षा ऋतु विदा ले लेती है और शरद की आगमन की आहट हो जाती है। बंगाल के निवासी सालभर नवरात्रि की प्रतीक्षा करते रहते हैं। बंगाल में तो “पूजो” का मतलब ही होता है मां दुर्गा की पूजा। जब नीले आकाश में श्वेत बादल छा जाते हैं। तब बंगाल में डाक ढोल बजने लगते हैं। और मां दुर्गा की आगमन की सूचना लेकर पूरे बंगाल में पूजा की गंध फैलने लगती है। बंगाल के मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में इस तरह व्यस्त हो जाते हैं, जैसे की कोई बच्चा अपनी प्रिय वस्तु को देखकर उसे पाने में लालायत हो जाता है। क्योंकि बंगालियों का सबसे बड़ा रोजगार का अवसर यही होता है।
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