Pitru Paksha : आश्विन मास के महीने में मनाया जाने वाला कुल 16 दिनों का यह उत्सव श्राद्ध के रूप में जाना जाता है। इस उत्सव में व्यक्ति अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते हैं। तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए उनका पिंडदान व जलांजलि करते हैं। उनके पूर्वज भी इन 16 दिनों में धरती लोक में आते हैं और अपने वंशजों से जलांजलि प्राप्त करते हैं।
Pitru Paksha : सनातन धर्म के शास्त्रों में व पुराणों में भी श्राद्ध का वर्णन किया गया है। भगवान राम ने भी अपने पिता का श्राद्ध किया था। इसके अलावा राजा भागीरथी ने भी अपने पितरों का पिंडदान किया था। अतः यह 16 दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए मनाया जाने वाला विशेष उत्सव है । आईए जानते हैं इस उत्सव के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां…..
Pitru Paksha : श्रद्धा पूर्वक किया गया महायज्ञ अर्थात कर्मकांड श्राद्ध
कर्मकांड श्राद्ध
Pitru Paksha : भारत की सनातन संस्कृति में अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति मनुष्य द्वारा किए गए श्रद्धापूर्वक महायज्ञ को कर्मकांड श्राद्ध के रूप में जाना जाता है। इस उत्सव में मनुष्य द्वारा मूल रूप से श्रद्धा देखी जाती है। अतः मनुष्य द्वारा श्रद्धा भाव से पूर्वजों को अर्पित किया जाने वाला कर्मकांड श्राद्ध के समूचे कर्मकांड के बराबर है। इसके अतिरिक्त यदि मनुष्य श्रद्धा के बिना होकर यह कर्मकांड करता है, तो वह बेमानी माना जाता है।
जलांजलि
Pitru Paksha : प्रारब्ध के कर्म बाद और पुनर्जन्म में आस्था रखने वाली भारतीय सनातन संस्कृति में यह लोक विश्वास अनादि काल से चल रहा है, कि हमारे पूर्वजों के दिवंगत होने के उपरांत भी उनका अस्तित्व बना रहता है। और वह अपनी संतान से जलांजलि की अपेक्षा बनाए रखते हैं। अतः श्राद्ध पक्ष में श्रद्धा पूर्वक जलांजलि अर्पित करने से दिवंगत पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। और अपनी संतान की मंगल कामना करते हैं।
पिंडदान
Pitru Paksha : भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति में पितरों का पिंडदान करने की व्यवस्था की गई है। इसमें मनुष्य अपने पितरों का बहती हुई नदियों में पंडित करते हैं।
Pitru Paksha : श्राद्ध पक्ष अर्थात पितरों का उत्सव
धरती पर आगमन
Pitru Paksha : श्राद्ध पक्ष प्रत्येक बस आश्विन मास के महीने में होता है। इस समय वर्षा काल में छाए हुए बादल छट जाते हैं। और आश्विन मास में आसमान स्वच्छ हो जाता है। अतः सुदूर पितृ लोक में बैठे हमारे पूर्वज जलांजलि ग्रहण करने के लिए धरती पर आते हैं।
महालय
Pitru Paksha : अश्विन मास में मनाए जाने वाला यह उत्सव 16 दिनों का होता है। श्राद्ध पक्ष के इस उत्सव को शास्त्रों में महालय के नाम से वर्णित किया गया है। जिसमें मह का अर्थ उत्सव और आलय का अर्थ घर से लगाया जाता है। अर्थात महालय का शाब्दिक अर्थ घर में उत्सव माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों के आने से हमारे घर में उत्सव सा मनाया जाता है। इन दिनों पितरों की संतुष्टि के लिए सभी घरों में खीर और पकवान बनाए जाते हैं।
नक्षत्रेभि: पितरों धामपिंशनम
Pitru Paksha : भारतीय सनातन संस्कृति में श्राद्ध का वर्णन वैदिक काल में भी किया गया है। ऋग्वेद में पितरों को रात्रि के समय आसमान में चमकने वाले तारों को माना गया है। यह इस बात का प्रतीक है, कि यदि उनकी संतान के जीवन में किसी भी प्रकार का दुख: या अंधकार आता है, तो वह अपने पितरों से कृपा करने की याचना करते हैं। और उनके पित्र उन्हें सुख प्रदान करते हैं।
Pitru Paksha : श्रद्धा भाव का प्रतीक है श्राद्ध
निर्जल व्रत
Pitru Paksha : सनातन धर्म में ऐसी प्रथा है, कि श्राद्ध के समय मनुष्य को अपने पूर्वजों के प्रिय पकवान बनाने चाहिए। लेकिन रामायण के रामचरितमानस में श्राद्ध का एक अद्भुत विधान देखने को मिलता है। रामचरितमानस में वर्णित लेख के अनुसार ‘ जब राजा भारत गुरु वशिष्ठ और अपने बंधुओ के साथ भगवान राम से मिलने चित्रकूट आए थे। तब गुरु वशिष्ठ ने श्री राम को उनके पिता महाराज दशरथ की मृत्यु का दु:खद समाचार सुनाया था। तब भगवान राम ने अपने पिता की श्रद्धांजलि के लिए उस दिन निर्जल व्रत किया था।
इंगुदी के गूदे और बेर के पिंड
Pitru Paksha : महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भगवान राम द्वारा पिता के लिए जलांजलि और पिंडदान करने का उल्लेख वर्णित है। उस उल्लेख के अनुसार भगवान राम ने सबसे पहले मंदाकिनी नदी में स्नान किया था। फिर उन्होंने इंगुदी के गूदे में बेर मिलाकर पिंड बनाए थे। और उन पिंडों को कुशो पर रखकर अपने पिता महाराज से विनय याचना की थी। कि हे पिता महाराज आजकल यही हम लोगों का आहार है अतः इस आहार को प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करके हमें अनुग्रहित करें। उस समय भगवान राम के पास वन में जो सामग्री उपलब्ध थी, उसी से उन्होंने अपने पिता का श्राद्ध किया था।
श्रद्धा भाव
Pitru Paksha : भगवान राम द्वारा किए गए श्राद्ध से यह स्पष्ट हो जाता है, कि हमारे पास जो भी खाद्य सामग्री उपलब्ध है, उसी से अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध में मनुष्य की श्रद्धा प्रमुख मानी गई है।
संवेदना और श्रद्धा का भाव
Pitru Paksha : भगवान राम ने पक्षीराज जटायु के देहांत हो जाने के उपरांत उन्हें जलांजलि प्रदान की थी। इन कथाओं से मनुष्य को प्रेरणा प्राप्त होती है। जो लोगों के प्रति संवेदना और श्रद्धा का भाव रखने के लिए प्रेरित करती है।
Pitru Paksha : पितरों का स्थान देवताओं से भी ऊपर है
देवताओं का देवता
Pitru Paksha : सनातन धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत में भी श्राद्ध को देव और पितरों को देवताओं का देवता माना गया है। इस महाकाव्य में अनेक प्रसंगों पर श्राद्ध के महत्व और विधान की विस्तार से चर्चा की गई है। इस प्रकार इस महाकाव्य ने पितरों को देवताओं का देवता माना है। पितरों को चैतन्य माना गया है, जिन्हें अपनी संतान से कृतज्ञता की अपेक्षा बनी रहती है। मनुष्य द्वारा किया गया श्राद्ध इसी कृतज्ञता का कर्मकांड माना जाता है।
वाणी और शरीर का संयम
Pitru Paksha : श्राद्ध पक्ष के इस महापर्व में भगवान शिव और पार्वती के संवाद में भगवान शिव ने कहा कि “जहां मनुष्य श्राद्ध और पितृ पूजन करता हो वहां मौन रहना बहुत आवश्यक है। मनुष्य द्वारा वाणी और शरीर को संयम रखकर किया गया श्राद्ध ही फलदायक सिद्ध होता है।” महाभारत के काव्य में स्त्री पर्व में एक अलग से श्राद्ध पर्वत मनाया जाता है, जो उन्हें अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों का बोध करवाता है।
Pitru Paksha : श्राद्ध उत्सव में तीन का महत्व
तीन की संख्या
Pitru Paksha : श्राद्ध पक्ष में तीन की संख्या का महत्वपूर्ण स्थान है। पितृ केवल पिता का सूचक माना जाता है। जबकि पितर में पिता पितामह और प्रपितामह तीनों लोग शामिल हो जाते हैं। मनुष्य के लिए इन्हीं तीन पूर्वजों का श्राद्ध करने का निर्देश दिया गया है।
तीन देवता
Pitru Paksha : श्राद्ध करने के लिए तीन प्रमुख देव माने गए हैं, जो भूमि के देवता वसु, वायु के देवता रुद्र और आकाश के देवता आदित्य माने जाते हैं। श्राद्ध करने से यह तीनों संतुष्ट हो जाते हैं।
तीन पिंड
Pitru Paksha : श्राद्ध करने के लिए तीन पिंड बनाए जाते हैं, और यह तीन पिंड कर्मों से ही श्राद्ध पूर्ण माना जाता है। इन्हे पूजन, जलांजलि और यथाशक्ति दान कहा जाता है।
तीन संपत्ति
Pitru Paksha : श्राद्ध करने के उपरांत संतुष्ट पितृ अपनी संतान को तीन प्रकार की संपत्ति प्रदान करते हैं, जिन्हें दीर्घायु, स्वर्ग और यश कहा जाता है।
तीन शास्त्र
Pitru Paksha : सनातन धर्म की संस्कृति में श्राद्ध करने के अनेक प्रकार के शास्त्रों का वर्णन किया गया है। इसमें से तीन शास्त्रों को प्रमुख माना गया है।
नित्य , नैमित्तिक और काम्य
Pitru Paksha : श्राद्ध पक्ष में जल स्रोतों का विशेष महत्व
बहती नदियां
Pitru Paksha : सनातन संस्कृति में भारत में बहने वाली नदियां पिंडदान और श्राद्ध के लिए विशेष मानी गई है। क्योंकि यह नदियां समुद्र में जाकर मिल जाती हैं। और भगवान विष्णु ही समुद्र में निवास करते हैं। पुरातन धर्म की मान्यता है, कि इस प्रकार की नदियों के माध्यम से हमारे पितर परमात्मा तक आसानी से पहुंच जाते हैं। और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
गंगा
Pitru Paksha : भारत में गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए मां गंगा से धरती में आगमन के लिए विनय की थी। तब मां गंगा का आगमन धरती पर हुआ था। गंगा के तट पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
फल्गु
Pitru Paksha : गया जी के समक्ष बहने वाली फल्गु नदी श्राद्ध कर्म कांड करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। यहां हर साल देश विदेश से कई लोग अपने पितरों की मोक्ष व शांति के लिए श्राद्ध करने आते हैं।
मंदाकिनी
Pitru Paksha : चित्रकूट में बहने वाली मंदाकिनी नदी पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है। भगवान श्री राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान इसी नदी के तट पर संपन्न किया था।
पुष्कर
Pitru Paksha : पुष्कर को वेद पुराणों में मुक्ति पाने का श्रेष्ठ तीर्थ स्थान बताया गया है। ऐसा माना जाता है, कि भगवान ब्रह्मा ने यहां पर यज्ञ संपन्न किया था। इस कारण इसके तट पर किए गए श्राद्ध कर्म पितरों की मुक्ति का सुनिश्चित स्थान है।
निष्कर्ष
Pitru Paksha : श्राद्ध करने के लिए मनुष्य को तर्पण, पूजन, दान और ब्राह्मण भोजन करवाने का विधान किया गया है। किंतु श्राद्ध का महत्वपूर्ण अंग मनुष्य की श्रद्धा से माना जाता है। अर्थात यदि मनुष्य के पास कुछ भी नहीं है, लेकिन वह श्राद्ध करने की भावना रखता है, तो वह अपने पितरों को सिर्फ जलांजलि अर्पित करके ही संतुष्ट कर सकता है। यदि उसके पास जल की व्यवस्था भी नहीं है, तो वह श्रद्धा भाव से हाथ उठाकर अपने पितरों को जलांजलि समर्पित कर सकता है। विधान के अनुसार इस प्रकार के श्राद्ध को अरण्य श्रद्धा कहा जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पूर्वजों का श्राद्ध कैसे किया जाता है?
उत्तर- श्राद्ध करने के लिए मनुष्य को तर्पण, पूजन, दान और ब्राह्मण भोजन करवाने का विधान किया गया है। किंतु श्राद्ध का महत्वपूर्ण अंग मनुष्य की श्रद्धा से माना जाता है। अर्थात यदि मनुष्य के पास कुछ भी नहीं है, लेकिन वह श्राद्ध करने की भावना रखता है, तो वह अपने पितरों को सिर्फ जलांजलि अर्पित करके ही संतुष्ट कर सकता है। यदि उसके पास जल की व्यवस्था भी नहीं है, तो वह श्रद्धा भाव से हाथ उठाकर अपने पितरों को जलांजलि समर्पित कर सकता है।
प्रश्न- श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि क्या है?
उत्तर- सनातन धर्म की संस्कृति में श्राद्ध करने के अनेक प्रकार के शास्त्रों का वर्णन किया गया है। इसमें से तीन शास्त्रों को प्रमुख माना गया है।
नित्य , नैमित्तिक और काम्य
प्रश्न- महालय क्या है?
उत्तर- अश्विन मास में मनाए जाने वाला यह उत्सव 16 दिनों का होता है। श्राद्ध पक्ष के इस उत्सव को शास्त्रों में महालय के नाम से वर्णित किया गया है। जिसमें मह का अर्थ उत्सव और आलय का अर्थ घर से लगाया जाता है। अर्थात महालय का शाब्दिक अर्थ घर में उत्सव माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों के आने से हमारे घर में उत्सव सा मनाया जाता है। इन दिनों पितरों की संतुष्टि के लिए सभी घरों में खीर और पकवान बनाए जाते हैं।
प्रश्न- नक्षत्रेभि: पितरों धामपिंशनम क्या है?
उत्तर- भारतीय सनातन संस्कृति में श्राद्ध का वर्णन वैदिक काल में भी किया गया है। ऋग्वेद में पितरों को रात्रि के समय आसमान में चमकने वाले तारों को माना गया है। यह इस बात का प्रतीक है, कि यदि उनकी संतान के जीवन में किसी भी प्रकार का दुख: या अंधकार आता है, तो वह अपने पितरों से कृपा करने की याचना करते हैं। और उनके पित्र उन्हें सुख प्रदान करते हैं।
प्रश्न- श्राद्ध पक्ष में जल स्रोतों का क्या महत्व है?
उत्तर- बहती नदियां
Pitru Paksha : सनातन संस्कृति में भारत में बहने वाली नदियां पिंडदान और श्राद्ध के लिए विशेष मानी गई है। क्योंकि यह नदियां समुद्र में जाकर मिल जाती हैं। और भगवान विष्णु ही समुद्र में निवास करते हैं। पुरातन धर्म की मान्यता है, कि इस प्रकार की नदियों के माध्यम से हमारे पितर परमात्मा तक आसानी से पहुंच जाते हैं। और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न- श्राद्ध उत्सव में तीन का क्या महत्व है?
उत्तर- श्राद्ध उत्सव में तीन का महत्व
तीन की संख्या :- श्राद्ध पक्ष में तीन की संख्या का महत्वपूर्ण स्थान है। पितृ केवल पिता का सूचक माना जाता है। जबकि पितर में पिता पितामह और प्रपितामह तीनों लोग शामिल हो जाते हैं। मनुष्य के लिए इन्हीं तीन पूर्वजों का श्राद्ध करने का निर्देश दिया गया है।
तीन देवता :- श्राद्ध करने के लिए तीन प्रमुख देव माने गए हैं, जो भूमि के देवता वसु, वायु के देवता रुद्र और आकाश के देवता आदित्य माने जाते हैं। श्राद्ध करने से यह तीनों संतुष्ट हो जाते हैं।
तीन पिंड :- श्राद्ध करने के लिए तीन पिंड बनाए जाते हैं, और यह तीन पिंड कर्मों से ही श्राद्ध पूर्ण माना जाता है। इन्हे पूजन, जलांजलि और यथाशक्ति दान कहा जाता है।
तीन संपत्ति :- श्राद्ध करने के उपरांत संतुष्ट पितृ अपनी संतान को तीन प्रकार की संपत्ति प्रदान करते हैं, जिन्हें दीर्घायु, स्वर्ग और यश कहा जाता है।
तीन शास्त्र :-सनातन धर्म की संस्कृति में श्राद्ध करने के अनेक प्रकार के शास्त्रों का वर्णन किया गया है। इसमें से तीन शास्त्रों को प्रमुख माना गया है।
नित्य , नैमित्तिक और काम्य
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