Ganesh Chaturthi : सनातन धर्म की माने तो, गणेश पुराण में कहा गया है कि जहां गणेश जी स्थापित होते है वहा हमेशा सुख, समृद्धि, शुभ, लाभ और वैभव बना रहता है। इसलिए भगवान गणेश को मंगल मूर्ति कहा जाता हैं। भगवान श्री गणेश की स्थापना, साधना, आराधना और विसर्जन बेहद सरल और आसान है।
इनकी पूजा के लिए किसी खास विधि की आवश्यकता नहीं होती हैं। इस लिए गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर इनकी स्थापना हर घर में होती हैं। भगवान गणेश भाव और तत्वों के स्वामी है, इसलिए भक्तो को त्रुटि का दोष दूर कर देते है। और समृद्धि का सुभाशीष प्रदान करते हैं।
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश विघ्नेश्वर है। केवल भगवान गणेश ही ऐसे देव है जिन्हे हर साल भक्त श्रद्धा से घर में स्थापित करते है। और अनंत चतुर्थी होने पर खुशी खुशी विदाई की जाती है। भगवान गणेश मंगल और सुख समृद्धि के देवता है। ये जहा विराजते है वहां सबकुछ शुभ शुभ ही होता है। आईए जानते है इस गणेश चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की कुछ खास पहलू और रोचक जानकारी …..
Ganesh Chaturthi : गणेशोत्सव के कुछ रोचक जानकारी
गणपति का आगमन शुभ
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश जी की स्थापना अपने आप में सबसे बड़ा ही मांगलिक उत्सव माना जाता हैं। भगवान गणेश जी के साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि जी की भी स्थापना की जाती हैं। ये सारी शक्तियां अपने नाम के अनुसार ही जीवन में खुशहाली लाती हैं। भगवान गणेश जी के आगमन पर घर को रंगोली और स्वास्तिक से सजाया जाता हैं। इनकी स्थापना करने के बाद हर दिन शुद्ध मन से पूजा पाठ और अलग अलग मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता हैं। इससे परिवार में प्रेम, एकता और शांति का भाव उत्पन्न होता है।
गणपति जी की सरल साधना
Ganesh Chaturthi : गणपति जी की मूर्ति के लिए सिर्फ मिट्टी की जरूरत होती है। समान मिट्टी को भगवान गणेश का आकार देकर की गई पूजा, अर्चना का भी पूर्ण फल प्राप्त होता है। यदि आपको मिट्टी ना मिल पाए तो हल्दी की गांठ से भी गणेश जी की मूर्ति बनाई जा सकती है नारद पुराण के अनुसार हल्दी के गणेश को स्वर्ण गणेश के समान प्रभावशाली माना जाता है।
यदि आपको प्रतिमा ना मिल पाए तो पूजा की सुपारी से मैं भी गणपति की स्थापना करना शुभ माना जाता है। पूजा की विधि के लिए श्री गणेशाय नमः बोलते हुए सिर्फ रोली का छींटा, चावल के दो दाने, गुड और बताशे से ही इनकी पूजा संपन्न हो जाती है। इनकी पूजा इतनी सरल है, कि अगर कोई गलती भी हो जाए तो भगवान गणेश अपने भक्तों को प्रकोप से बचा लेते हैं।
उत्साह व सृजन के स्वामी
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश का जन्म ही सृजन का एक मुख्य प्रमाण है। माता पार्वती ने पुतला बनाकर उसमें प्राण डाले थे इस प्रकार श्री गणेश जी का सृजन किया गया था। भगवान गणेश उत्साह की स्वामी माने जाते हैं। इनका सीधा संबंध पृथ्वी से माना गया है। ऐसी मान्यता है, कि पृथ्वी के पुत्र मंगल के अंदर गणपति जी की वजह से ही उत्साह का सृजन हुआ था। भगवान गणेश ने अलग-अलग युगों में अवतार लेकर संसार को शोक व संकट का नाश कर उत्साह पैदा किया है। इसलिए हर मांगलिक कार्यक्रम में सबसे पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है।
अशुभ और अमंगल का नाश
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश अशुभ और मंगल का नाश करने वाले देवता माने गए हैं। इनके द्वारा की गई अशुभता के विनाश से ही जीवन में ऐश्वर्य व खुशहाली का संग्रह संभव हो पता है। इसलिए भगवान गणेश मंगल के समान शक्तिशाली देवता हैं। उनके पूजन से साहस पद और प्रतिष्ठा बढ़ती रहती है। ज्योतिष शास्त्र में धन एश्वर व संतान के स्वामी गणेश जी को माना गया है। भगवान गणेश की उपासना करने से नवग्रह की दोष से मुक्ति मिलती है।
प्रथम पूज्य गणेश
Ganesh Chaturthi : श्री गणेश को ही शुभ मुहूर्त कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस काल में भगवान गणेश की उपस्थिति हो वह समय शुभ मुहूर्त बन जाता है। इसलिए सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा की जाती है। गणपति सभी दिशाओं के स्वामी माने जाते हैं। उनकी आज्ञा के बिना कोई देवी देवता पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते हैं। सबसे पहले यह सभी दिशाओं की बाधा दूर करते हैं, फिर देवी देवता पहुंचते हैं। यही कारण है, कि किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश जी का ही आवाहन किया जाता है, जिससे पूजा संपन्न मानी जाती है।
रिद्धि सिद्धि में लक्ष्मी जी का वास
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश के पास शुभ और मंगल करने वाली भगवान श्रीमान नारायण की शक्तियां व्याप्त है ।इसलिए भगवान गणेश को राजसी देवता भी माना जाता है। विष्णु जी के पास सृष्टि के पालन की जिम्मेदारी है जो श्री गणेश के माध्यम से ही पूरी हो पाती है। भगवान गणेश की पत्नियों रिद्धि और सिद्धि में मां लक्ष्मी जी का बास सदैव बना रहता है। रिद्धि का तात्पर्य वृद्धि और सिद्धि के तात्पर्य सुविधा से माना जाता है। इसलिए गणपति पूजन में मां लक्ष्मी रूपी रिद्धि सिद्धि का जीवन में आना भी महत्वपूर्ण सूचक माना गया है।
विदाई का अनुष्ठान
Ganesh Chaturthi : गणेश उत्सव का शुभारंभ गणेश चतुर्थी से शुरू होकर विदाई तक पूरा माना जाता है। गणपति जी की विदाई करते समय उनकी प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो जन्म मृत्यु के चक्कर को पूर्ण कर देता है। जल में भगवान नारायण का वास होता है। इसलिए गणेश और नारायण को मिलने का यह अनुष्ठान समृद्धि और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
Ganesh Chaturthi : श्री गणेश और शंख की कथा
गणपति की चंचलता
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश जी ने बुद्धिमत्ता और बधाओ को दूर करने वाले के रूप में पूजा की जाती है। उनका व्यक्तिगत जीवन एक शरारती और चंचलता के रूप में भी माना जाता है। जो उनकी विशेषता को और गहरा महत्व प्रदान करती है।
दिव्य शंख की घटना
Ganesh Chaturthi : एक बार एक दिलचस्प घटना घटी, भगवान विष्णु ने देखा कि उनका प्रिय दिव्य शंख अचानक गायब हो गया है। जिसे भगवान विष्णु अपनी शक्ति और पहचान का प्रतीक मानते थे। विष्णु जी के सभी प्रयासों के बावजूद भी भगवान विष्णु शंख का कोई पता ना लगा सके। तब उन्हें अचानक शंख की प्रति ध्वनि सुनाई पढ़ने लगी, यह ध्वनि कैलाश पर्वत से आ रही थी।
गणेश जी और शंख का खेल
Ganesh Chaturthi : जब भगवान विष्णु कैलाश पर्वत गये, तो उन्होंने देखा की गणेश जी शंख के साथ खेल रहे हैं जैसे कोई खिलौना हो। भगवान विष्णु को समझते देर न लगी कि शंख गायब होने का श्रेय गणेश जी को ही जाता है। शंख वापस पाने के लिए उन्होंने भगवान शंकर से सलाह लेना उचित समझा। भगवान शंकर ने उन्हें सुझाव दिया की शंख वापस पाने के लिए गणेश जी की पूजा ही एकमात्र सरल उपाय है।
भव्य पूजा का आयोजन
Ganesh Chaturthi : भगवान विष्णु ने गणेश जी की पूजा के लिए भव्य आयोजन किया। जिससे प्रसन्न होकर गणेश जी ने भगवान विष्णु को शंख वापस लौटाया। यह कथा भगवान गणेश के शरारती स्वभाव और भक्तों के प्रति उनकी असीम कृपा का अद्भुत उदाहरण है। साथ ही यह सिखाती है कि विनम्र भक्ति से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
Ganesh Chaturthi : श्री गणेश और दूर्वा की कथा
राक्षस अनलासुर
Ganesh Chaturthi : पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय पृथ्वी लोक पर अनलासुर नामक राक्षस ने भयंकर उत्पाद मचाया हुआ था। उसका अत्याचार चरम सीमा तक पहुंच गया था। उसने पृथ्वी लोक के साथ स्वर्ग और पाताल लोक मैं भी त्राहि त्राहि मचा रखी थी। अनलासुर इतना भयानक राक्षस था कि वह लोगों को जीवित ही निकल जाता था। सभी देवी देवता उसके कृत्य से परेशान थे। वे इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे सहायता के लिए प्रार्थना की।
अनलासुर का बध
Ganesh Chaturthi : भगवान शिव ने सभी देवताओं से कहा, कि उनकी समस्या का समाधान सिर्फ गणेश जी कर सकते हैं। तब सभी देवताओं ने गणेश जी की स्तुति करना आरंभ की। भगवान गणेश से अनलासुर का वध करने का आग्रह किया। गणेश जी ने अनलासुर को जीवित निकाल लिया। लेकिन ऐसा करने से उनके पेट में अत्यधिक जलन होने लगी और उनकी ज्वाला शांत नहीं हो पा रही थी।
दूर्वा ने की पेट की ज्वाला शांत
Ganesh Chaturthi : गणेश जी की पेट की जलन को देखते हुए महर्षि कश्यप में 21 दूर्वा इकट्ठी की और गणेश जी को खिलाई गई। दूर्वा का सेवन करने के बाद गणेश जी की पेट की ज्वाला शांत हुई। इस कारण से गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय खाद्य पदार्थ है। और ऐसा माना जाता है कि उन्हें तीन या पांच गांठ वाली दूर्वा अर्पित करने से वह अपने भक्तों से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार दूर्वा का रस पेट की गर्मी को शांत करने में मदद करता है। जिससे गणेश जी की इस कथा का विशेष महत्व दिया जाता है।
Ganesh Chaturthi : कबीट, जामुन और केसर की कथा
वर्णित भोज्य मंत्र
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश की आराधना में वर्णित मंत्र ” कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम” मैं भगवान श्री गणेश को कबीट, जामुन और केसर का सेवन करते हुए देखा गया है। इस मंत्र के पीछे भी भगवान गणेश की बहुत रोचक कथा है। आईए जानते हैं….
मीठे पदार्थ का सेवन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश के सबसे प्रिय भोजन लड्डू, मोदक और गन्ना रहा है। इस पर माता पार्वती को उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता होने लगी, कि इतने मीठे पदार्थ का अत्यधिक सेवन करने से गणेश जी का स्वास्थ खराब हो सकता है। इसलिए माता ने गणेश जी की इस समस्या का समाधान खोजने का अनुरोध किया।
कबीट, जामुन और केसर का सेवन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश ने अपनी माता पार्वती की चिंता को समझ कर कहा, कि अब वह कबीट का फल, जामुन और केसर का सेवन करेंगे। यह आहार न केवल उनके स्वास्थ्य की रक्षा करेंगा, बल्कि उनके भक्तों को भी रोगों से मुक्त करने में मदद करेंगा। कबीट के फल में आयुर्वेदिक औषधि का गुण होता है। जामुन का फल मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। जबकि केसर शरीर में ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करने में मदद करता है।
आहार शैली में बदलाव
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश जी ने अपनी माता की चिंता को दूर करते हुए अपने आहार शैली में बदलाव किया। और अपने भक्तों को भी संदेश दिया, कि स्वास्थ्य और शुद्धता का महत्व सर्वोपरि होना बहुत आवश्यक है। इस कथा के आधार पर भक्त गणेश जी की आराधना करते हैं, जो सभी दुखों और रोगों को नाश करने में सहायता प्रदान करते हैं।
Ganesh Chaturthi : मूषक के वाहन बनने की कथा
गजमुखासुर दैत्य
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश के मूषक के वाहन बनने की पौराणिक कथा बहुत ही रोचक मानी गई है। उसे समय गजमुखासुर नामक दैत्य हुआ करता था। गजमुखासुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर दिया था। सभी देवता लोग एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे और उनसे गजमुखासुर का वध करने की विनय याचना की। भगवान गणेश ने अपने दांतों से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह चूहा बनाकर भागने लगा। लेकिन चंचल भगवान गणेश जी ने उसको पकड़ लिया। पकड़े जाने के उपरांत गजमुखासुर मृत्यु के भय से भगवान गणेश से अपने जीवन की क्षमा याचना करने लगा। तब भगवान गणेश ने उस दैत्य को मूषक के रूप में अपना वाहन स्वीकार किया।
गंधर्व क्रौंच
Ganesh Chaturthi : दूसरी कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र अपने दरबार में किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे। लेकिन उनके दरबार का गंधर्व क्रौंच नामक देव किसी ओर ही मनोदशा में था। वह स्वर्ग की अप्सराओं के साथ हंसी टिटौली करने में मग्न था। इस पर देवराज इंद्र ने गंधर्व क्रौंच के ऊपर नाराज होकर उसे मूषक बन जाने का श्राप दे डाला। गंधर्व क्रौंच इतना अधिक बलवान था, कि मूषक के रूप में स्वर्ग से सीधे महर्षि पराशर मुनि के आश्रम में जा गिरा। और अपने चंचल स्वभाव के कारण उनके आश्रम में उत्पाद मचाने लगा।
गणेश जी का वाहन
Ganesh Chaturthi : गंधर्व क्रौंच के उत्पात से परेशान होकर महर्षि पाराशर जी ने भगवान गणेश से मदद मांगी। भगवान गणेश ने अपने आसन पर बैठे-बैठे एक तेजस्वी पासा गंधर्व क्रौंच के ऊपर फेंका जिससे वह मूषक मूर्छित हो गया। उसकी मूर्छा खुलते ही उसने भगवान गणेश की उपासना करनी शुरू कर दी। और अपने प्राणों के लिए क्षमा याचना करने लगा। भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। लेकिन उसने वरदान ना लेकर गणेश जी से कहा, कि आप हमसे कुछ मांग लो। तब भगवान गणेश जी ने कहा कि आज से तुम मेरे वाहन के रूप में जाने जाओगे।
Ganesh Chaturthi : गणेश जी के प्रिय व्यंजन मोदक की कथा
मोद और ज्ञान का भोजन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को मोदक का भोग बहुत प्रिय है। क्योंकि मोदक का स्वरूप ज्ञान, मिठास और आनंद का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म में मोदक को मोद और ज्ञान का भोजन कहा जाता है।
मोदक की कथा
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को मोदक सबसे अधिक प्रिय क्यों हैं इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं है। लेकिन हम आपको एक प्रमुख कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। एक बार देवताओं ने बुद्धिमता की परीक्षा लेने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया।
ब्रम्हांड की परिक्रमा
Ganesh Chaturthi : इस प्रतियोगिता के अनुसार देवताओं ने यह तय किया था, कि कौन सबसे पहले पूरी दुनिया के चक्कर यानी ब्रह्मांड का परिक्रमा लगाकर जल्दी वापस आएगा। जो देव जल्दी वापस आएगा वह विजई माना जाएगा। भगवान गणेश ने अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता के आधार पर अपने माता-पिता भगवान शंकर और पार्वती जी के परिक्रमा करके जीत हासिल की थी। उनकी इस चतुराई से प्रभावित होकर देवताओं ने उन्हें मोदक का भोग लगाया था।
समग्रता का प्रतीक मोदक
Ganesh Chaturthi : देवताओं द्वारा लगाए गए मोदक के भोग को भगवान गणेश जी ने बहुत प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया था। तभी से गणेश जी का मोदक सबसे प्रिय खाद्य पदार्थ हो गया हैं । इसके अलावा मोदक का गोल आकार भी पूर्णतः और समग्रता का प्रतीक माना गया है। जो भगवान गणेश की बुद्धिमत्ता, ज्ञान और जीवन के हर पहलू को संतुलन के साथ मार्गदर्शन करता है। यही कारण है कि भगवान गणेश को मोदक बहुत अच्छे लगते हैं। इसलिए उनके भोग में मोदक हमेशा अर्पित किए जाते हैं।
Ganesh Chaturthi : गणेश जी को अर्पित ना करें यें वस्तुएं
पूजा अर्चना पर ध्यान दें
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए यदि आप पूजा अर्चना कर रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि उनकी पूजा में कुछ ऐसा ना चढ़ा दे जो उन्हें पसंद नहीं है। जैसे तुलसी
तुलसी माता की कथा
Ganesh Chaturthi : पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश ने माता तुलसी से विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। प्रस्ताव ठुकराने से क्रोधित होकर माता तुलसी ने उन्हें 2 विवाह होने का श्राप दिया था। उसके बाद भगवान गणेश जी ने माता तुलसी को राक्षस से शादी करने का श्राप दिया था। इन्हीं विवादों के चलते भगवान गणेश पर तुलसी दल नहीं चढ़ाया जाता।
सफेद वास्तुओ का उपयोग
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को सफेद वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती। इसके पीछे एक पौराणिक कथा व्याप्त है। एक बार चंद्र देव ने गणेश जी का मजाक बनाया था। जिससे चंद्रमा को गणपति जी ने श्राप दे दिया था। और चंद्रमा सफेद रंग से संबंधित है। इसलिए गणपति के ऊपर सफेद वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती।
सूखे हुए फूल
Ganesh Chaturthi : सूखे और मुरझाए हुए फूल निर्धनता का प्रतीक माने जाते हैं। और भगवान गणेश मंगल और समृद्धि के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इसी विरोधावास के कारण भगवान गणेश को सूखे और मुरझाए फूल अर्पित नहीं किए जाते।
Ganesh Chaturthi : गणपति जी का विसर्जन
गणेश चतुर्थी का उदगम
Ganesh Chaturthi : महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की प्रारंभ करने का विचार बनाया, तो भगवान ने उन्हें प्रथम पूज्य भगवान गणेश की सहायता लेने के लिए कहा। महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से महाभारत की रचना करने के लिए आग्रह किया था। भगवान गणेश महर्षि के आग्रह पर महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए तैयार हो गये। भगवान गणेश, चतुर्थी के दिन महर्षि वेदव्यास के आश्रम गए तो महर्षि वेदव्यास ने उनका आदर सत्कार करके आसन पर विराजमान किया। आज इसलिए आज हम गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की स्थापना करते हैं।
गणेशोत्सव का शुभ आरंभ
Ganesh Chaturthi : इसके पश्चात महर्षि वेदव्यास जी ने बोलना शुरू किया और भगवान गणेश जी ने महाभारत को सुनकर लिपिबद्ध करना शुरू कर दिया। महाभारत की रचना करते हुए 10 दिन तक लगातार ऐसा ही सिलसिला चलता रहा ।इसीलिए यह 10 दिन गणेश उत्सव के रूप में मनाया जाते है। और अनंत चतुर्थी के दिन महाभारत की रचना का समापन हुआ। कथाओं में बताया जाता है, कि भगवान गणेश जी ने भगवान श्री कृष्णा और गीता का रसपान करते हुए महाभारत को लिपिबद्ध किया था। जिससे उनके अष्टसात्विक भाव का आवेग बहुत बढ़ गया था। जिसके कारण उनका पूरा शरीर गर्म होने लगा था।
गणेश विसर्जन की प्रथा
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश की तपन को शांत करने के लिए महर्षि वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर सबसे पहले गीली मिट्टी का लेप लगाया। इसके बाद उन्होंने भगवान गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया। इसके उपरांत ही भगवान गणेश की तपन शांत हुई। इस प्रकार गणेश विसर्जन की प्रथा शुरू हुई।
निष्कर्ष
Ganesh Chaturthi : गणेश चतुर्थी का त्यौहार सुख, समृद्धि, शुभ, लाभ और ऐश्वर्य वाला है। इसलिए आज हमसब मिलकर गणेश चतुर्थी और गणेश उत्सव के पावन अवसर को विधिवत रूप से मिलकर मनाएं।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भगवान गणेश प्रथम पूज्य क्यों है?
उत्तर- प्रथम पूज्य गणेश
Ganesh Chaturthi : श्री गणेश को ही शुभ मुहूर्त कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस काल में भगवान गणेश की उपस्थिति हो वह समय शुभ मुहूर्त बन जाता है। इसलिए सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा की जाती है। गणपति सभी दिशाओं के स्वामी माने जाते हैं। उनकी आज्ञा के बिना कोई देवी देवता पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते हैं। सबसे पहले यह सभी दिशाओं की बाधा दूर करते हैं, फिर देवी देवता पहुंचते हैं। यही कारण है, कि किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश जी का ही आवाहन किया जाता है, जिससे पूजा संपन्न मानी जाती है।
प्रश्न- गणेश चतुर्थी की शुरुआत क्यों हुई?
उत्तर- गणपति का आगमन शुभ
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश जी की स्थापना अपने आप में सबसे बड़ा ही मांगलिक उत्सव माना जाता हैं। भगवान गणेश जी के साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि जी की भी स्थापना की जाती हैं। ये सारी शक्तियां अपने नाम के अनुसार ही जीवन में खुशहाली लाती हैं। भगवान गणेश जी के आगमन पर घर को रंगोली और स्वास्तिक से सजाया जाता हैं। इनकी स्थापना करने के बाद हर दिन शुद्ध मन से पूजा पाठ और अलग अलग मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता हैं। इससे परिवार में प्रेम, एकता और शांति का भाव उत्पन्न होता है।
प्रश्न- भारत में श्री गणेश की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर- प्रथम पूज्य गणेश
Ganesh Chaturthi : श्री गणेश को ही शुभ मुहूर्त कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस काल में भगवान गणेश की उपस्थिति हो वह समय शुभ मुहूर्त बन जाता है। इसलिए सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा की जाती है। गणपति सभी दिशाओं के स्वामी माने जाते हैं। उनकी आज्ञा के बिना कोई देवी देवता पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते हैं। सबसे पहले यह सभी दिशाओं की बाधा दूर करते हैं, फिर देवी देवता पहुंचते हैं। यही कारण है, कि किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश जी का ही आवाहन किया जाता है, जिससे पूजा संपन्न मानी जाती है।
प्रश्न- गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है?
उत्तर- गणपति का आगमन शुभ
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश जी की स्थापना अपने आप में सबसे बड़ा ही मांगलिक उत्सव माना जाता हैं। भगवान गणेश जी के साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि जी की भी स्थापना की जाती हैं। ये सारी शक्तियां अपने नाम के अनुसार ही जीवन में खुशहाली लाती हैं। भगवान गणेश जी के आगमन पर घर को रंगोली और स्वास्तिक से सजाया जाता हैं। इनकी स्थापना करने के बाद हर दिन शुद्ध मन से पूजा पाठ और अलग अलग मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता हैं। इससे परिवार में प्रेम, एकता और शांति का भाव उत्पन्न होता है।
प्रश्न- गणेश चतुर्थी क्यों मनाई गई?
उत्तर- गणपति का आगमन शुभ
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश जी की स्थापना अपने आप में सबसे बड़ा ही मांगलिक उत्सव माना जाता हैं। भगवान गणेश जी के साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि जी की भी स्थापना की जाती हैं। ये सारी शक्तियां अपने नाम के अनुसार ही जीवन में खुशहाली लाती हैं। भगवान गणेश जी के आगमन पर घर को रंगोली और स्वास्तिक से सजाया जाता हैं। इनकी स्थापना करने के बाद हर दिन शुद्ध मन से पूजा पाठ और अलग अलग मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता हैं। इससे परिवार में प्रेम, एकता और शांति का भाव उत्पन्न होता है।
प्रश्न- गणेश जी ने विष्णु भगवान का शंख कैसे वापस किया?
उत्तर- श्री गणेश और शंख की कथा
गणपति की चंचलता
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश जी ने बुद्धिमत्ता और बधाओ को दूर करने वाले के रूप में पूजा की जाती है। उनका व्यक्तिगत जीवन एक शरारती और चंचलता के रूप में भी माना जाता है। जो उनकी विशेषता को और गहरा महत्व प्रदान करती है।
दिव्य शंख की घटना
Ganesh Chaturthi : एक बार एक दिलचस्प घटना घटी, भगवान विष्णु ने देखा कि उनका प्रिय दिव्य शंख अचानक गायब हो गया है। जिसे भगवान विष्णु अपनी शक्ति और पहचान का प्रतीक मानते थे। विष्णु जी के सभी प्रयासों के बावजूद भी भगवान विष्णु शंख का कोई पता ना लगा सके। तब उन्हें अचानक शंख की प्रति ध्वनि सुनाई पढ़ने लगी, यह ध्वनि कैलाश पर्वत से आ रही थी।
गणेश जी और शंख का खेल
Ganesh Chaturthi : जब भगवान विष्णु कैलाश पर्वत गये, तो उन्होंने देखा की गणेश जी शंख के साथ खेल रहे हैं जैसे कोई खिलौना हो। भगवान विष्णु को समझते देर न लगी कि शंख गायब होने का श्रेय गणेश जी को ही जाता है। शंख वापस पाने के लिए उन्होंने भगवान शंकर से सलाह लेना उचित समझा। भगवान शंकर ने उन्हें सुझाव दिया की शंख वापस पाने के लिए गणेश जी की पूजा ही एकमात्र सरल उपाय है।
भव्य पूजा का आयोजन
Ganesh Chaturthi : भगवान विष्णु ने गणेश जी की पूजा के लिए भव्य आयोजन किया। जिससे प्रसन्न होकर गणेश जी ने भगवान विष्णु को शंख वापस लौटाया। यह कथा भगवान गणेश के शरारती स्वभाव और भक्तों के प्रति उनकी असीम कृपा का अद्भुत उदाहरण है। साथ ही यह सिखाती है कि विनम्र भक्ति से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न- गणेश जी की दूर्वा से कैसे पेट की ज्वाला शान्त हुयी ?
उत्तर- श्री गणेश और दूर्वा की कथा
राक्षस अनलासुर
Ganesh Chaturthi : पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय पृथ्वी लोक पर अनलासुर नामक राक्षस ने भयंकर उत्पाद मचाया हुआ था। उसका अत्याचार चरम सीमा तक पहुंच गया था। उसने पृथ्वी लोक के साथ स्वर्ग और पाताल लोक मैं भी त्राहि त्राहि मचा रखी थी। अनलासुर इतना भयानक राक्षस था कि वह लोगों को जीवित ही निकल जाता था। सभी देवी देवता उसके कृत्य से परेशान थे। वे इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे सहायता के लिए प्रार्थना की।
अनलासुर का बध
Ganesh Chaturthi : भगवान शिव ने सभी देवताओं से कहा, कि उनकी समस्या का समाधान सिर्फ गणेश जी कर सकते हैं। तब सभी देवताओं ने गणेश जी की स्तुति करना आरंभ की। भगवान गणेश से अनलासुर का वध करने का आग्रह किया। गणेश जी ने अनलासुर को जीवित निकाल लिया। लेकिन ऐसा करने से उनके पेट में अत्यधिक जलन होने लगी और उनकी ज्वाला शांत नहीं हो पा रही थी।
दूर्वा ने की पेट की ज्वाला शांत
Ganesh Chaturthi : गणेश जी की पेट की जलन को देखते हुए महर्षि कश्यप में 21 दूर्वा इकट्ठी की और गणेश जी को खिलाई गई। दूर्वा का सेवन करने के बाद गणेश जी की पेट की ज्वाला शांत हुई। इस कारण से गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय खाद्य पदार्थ है। और ऐसा माना जाता है कि उन्हें तीन या पांच गांठ वाली दूर्वा अर्पित करने से वह अपने भक्तों से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार दूर्वा का रस पेट की गर्मी को शांत करने में मदद करता है। जिससे गणेश जी की इस कथा का विशेष महत्व दिया जाता है।
प्रश्न- कबीट, जामुन और केसर क्यों भाते है ?
उत्तर- वर्णित भोज्य मंत्र
Ganesh Chaturthi : भगवान श्री गणेश की आराधना में वर्णित मंत्र ” कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम” मैं भगवान श्री गणेश को कबीट, जामुन और केसर का सेवन करते हुए देखा गया है। इस मंत्र के पीछे भी भगवान गणेश की बहुत रोचक कथा है। आईए जानते हैं….
मीठे पदार्थ का सेवन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश के सबसे प्रिय भोजन लड्डू, मोदक और गन्ना रहा है। इस पर माता पार्वती को उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता होने लगी, कि इतने मीठे पदार्थ का अत्यधिक सेवन करने से गणेश जी का स्वास्थ खराब हो सकता है। इसलिए माता ने गणेश जी की इस समस्या का समाधान खोजने का अनुरोध किया।
कबीट, जामुन और केसर का सेवन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश ने अपनी माता पार्वती की चिंता को समझ कर कहा, कि अब वह कबीट का फल, जामुन और केसर का सेवन करेंगे। यह आहार न केवल उनके स्वास्थ्य की रक्षा करेंगा, बल्कि उनके भक्तों को भी रोगों से मुक्त करने में मदद करेंगा। कबीट के फल में आयुर्वेदिक औषधि का गुण होता है। जामुन का फल मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। जबकि केसर शरीर में ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करने में मदद करता है।
आहार शैली में बदलाव
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश जी ने अपनी माता की चिंता को दूर करते हुए अपने आहार शैली में बदलाव किया। और अपने भक्तों को भी संदेश दिया, कि स्वास्थ्य और शुद्धता का महत्व सर्वोपरि होना बहुत आवश्यक है। इस कथा के आधार पर भक्त गणेश जी की आराधना करते हैं, जो सभी दुखों और रोगों को नाश करने में सहायता प्रदान करते हैं।
प्रश्न- चूहा क्यों है गणेश जी का वाहन ?
उत्तर- मूषक के वाहन बनने की कथा
गजमुखासुर दैत्य
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश के मूषक के वाहन बनने की पौराणिक कथा बहुत ही रोचक मानी गई है। उसे समय गजमुखासुर नामक दैत्य हुआ करता था। गजमुखासुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर दिया था। सभी देवता लोग एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे और उनसे गजमुखासुर का वध करने की विनय याचना की। भगवान गणेश ने अपने दांतों से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह चूहा बनाकर भागने लगा। लेकिन चंचल भगवान गणेश जी ने उसको पकड़ लिया। पकड़े जाने के उपरांत गजमुखासुर मृत्यु के भय से भगवान गणेश से अपने जीवन की क्षमा याचना करने लगा। तब भगवान गणेश ने उस दैत्य को मूषक के रूप में अपना वाहन स्वीकार किया।
गंधर्व क्रौंच
Ganesh Chaturthi : दूसरी कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र अपने दरबार में किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे। लेकिन उनके दरबार का गंधर्व क्रौंच नामक देव किसी ओर ही मनोदशा में था। वह स्वर्ग की अप्सराओं के साथ हंसी टिटौली करने में मग्न था। इस पर देवराज इंद्र ने गंधर्व क्रौंच के ऊपर नाराज होकर उसे मूषक बन जाने का श्राप दे डाला। गंधर्व क्रौंच इतना अधिक बलवान था, कि मूषक के रूप में स्वर्ग से सीधे महर्षि पराशर मुनि के आश्रम में जा गिरा। और अपने चंचल स्वभाव के कारण उनके आश्रम में उत्पाद मचाने लगा।
गणेश जी का वाहन
Ganesh Chaturthi : गंधर्व क्रौंच के उत्पात से परेशान होकर महर्षि पाराशर जी ने भगवान गणेश से मदद मांगी। भगवान गणेश ने अपने आसन पर बैठे-बैठे एक तेजस्वी पासा गंधर्व क्रौंच के ऊपर फेंका जिससे वह मूषक मूर्छित हो गया। उसकी मूर्छा खुलते ही उसने भगवान गणेश की उपासना करनी शुरू कर दी। और अपने प्राणों के लिए क्षमा याचना करने लगा। भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। लेकिन उसने वरदान ना लेकर गणेश जी से कहा, कि आप हमसे कुछ मांग लो। तब भगवान गणेश जी ने कहा कि आज से तुम मेरे वाहन के रूप में जाने जाओगे।
प्रश्न- समग्रता का प्रतीक मोदक ही क्यों है ?
उत्तर- गणेश जी के प्रिय व्यंजन मोदक की कथा
मोद और ज्ञान का भोजन
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को मोदक का भोग बहुत प्रिय है। क्योंकि मोदक का स्वरूप ज्ञान, मिठास और आनंद का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म में मोदक को मोद और ज्ञान का भोजन कहा जाता है।
मोदक की कथा
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को मोदक सबसे अधिक प्रिय क्यों हैं इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं है। लेकिन हम आपको एक प्रमुख कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। एक बार देवताओं ने बुद्धिमता की परीक्षा लेने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया।
ब्रम्हांड की परिक्रमा
Ganesh Chaturthi : इस प्रतियोगिता के अनुसार देवताओं ने यह तय किया था, कि कौन सबसे पहले पूरी दुनिया के चक्कर यानी ब्रह्मांड का परिक्रमा लगाकर जल्दी वापस आएगा। जो देव जल्दी वापस आएगा वह विजई माना जाएगा। भगवान गणेश ने अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता के आधार पर अपने माता-पिता भगवान शंकर और पार्वती जी के परिक्रमा करके जीत हासिल की थी। उनकी इस चतुराई से प्रभावित होकर देवताओं ने उन्हें मोदक का भोग लगाया था।
समग्रता का प्रतीक मोदक
Ganesh Chaturthi : देवताओं द्वारा लगाए गए मोदक के भोग को भगवान गणेश जी ने बहुत प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया था। तभी से गणेश जी का मोदक सबसे प्रिय खाद्य पदार्थ हो गया हैं । इसके अलावा मोदक का गोल आकार भी पूर्णतः और समग्रता का प्रतीक माना गया है। जो भगवान गणेश की बुद्धिमत्ता, ज्ञान और जीवन के हर पहलू को संतुलन के साथ मार्गदर्शन करता है। यही कारण है कि भगवान गणेश को मोदक बहुत अच्छे लगते हैं। इसलिए उनके भोग में मोदक हमेशा अर्पित किए जाते हैं।
प्रश्न- गणेश जी को क्या अर्पित नहीं करना चाहिए ?
उत्तर- गणेश जी को अर्पित ना करें यें वस्तुएं
पूजा अर्चना पर ध्यान दें
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए यदि आप पूजा अर्चना कर रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि उनकी पूजा में कुछ ऐसा ना चढ़ा दे जो उन्हें पसंद नहीं है। जैसे तुलसी
तुलसी माता की कथा
Ganesh Chaturthi : पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश ने माता तुलसी से विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। प्रस्ताव ठुकराने से क्रोधित होकर माता तुलसी ने उन्हें 2 विवाह होने का श्राप दिया था। उसके बाद भगवान गणेश जी ने माता तुलसी को राक्षस से शादी करने का श्राप दिया था। इन्हीं विवादों के चलते भगवान गणेश पर तुलसी दल नहीं चढ़ाया जाता।
सफेद वास्तुओ का उपयोग
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को सफेद वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती। इसके पीछे एक पौराणिक कथा व्याप्त है। एक बार चंद्र देव ने गणेश जी का मजाक बनाया था। जिससे चंद्रमा को गणपति जी ने श्राप दे दिया था। और चंद्रमा सफेद रंग से संबंधित है। इसलिए गणपति के ऊपर सफेद वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती।
सूखे हुए फूल
Ganesh Chaturthi : सूखे और मुरझाए हुए फूल निर्धनता का प्रतीक माने जाते हैं। और भगवान गणेश मंगल और समृद्धि के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इसी विरोधावास के कारण भगवान गणेश को सूखे और मुरझाए फूल अर्पित नहीं किए जाते।
प्रश्न- गणेश जी विषर्जन क्यों किया जाता है ?
उत्तर- गणपति जी का विसर्जन
गणेश चतुर्थी का उदगम
Ganesh Chaturthi : महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की प्रारंभ करने का विचार बनाया, तो भगवान ने उन्हें प्रथम पूज्य भगवान गणेश की सहायता लेने के लिए कहा। महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से महाभारत की रचना करने के लिए आग्रह किया था। भगवान गणेश महर्षि के आग्रह पर महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए तैयार हो गये। भगवान गणेश, चतुर्थी के दिन महर्षि वेदव्यास के आश्रम गए तो महर्षि वेदव्यास ने उनका आदर सत्कार करके आसन पर विराजमान किया। आज इसलिए आज हम गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की स्थापना करते हैं।
गणेशोत्सव का शुभ आरंभ
Ganesh Chaturthi : इसके पश्चात महर्षि वेदव्यास जी ने बोलना शुरू किया और भगवान गणेश जी ने महाभारत को सुनकर लिपिबद्ध करना शुरू कर दिया। महाभारत की रचना करते हुए 10 दिन तक लगातार ऐसा ही सिलसिला चलता रहा ।इसीलिए यह 10 दिन गणेश उत्सव के रूप में मनाया जाते है। और अनंत चतुर्थी के दिन महाभारत की रचना का समापन हुआ। कथाओं में बताया जाता है, कि भगवान गणेश जी ने भगवान श्री कृष्णा और गीता का रसपान करते हुए महाभारत को लिपिबद्ध किया था। जिससे उनके अष्टसात्विक भाव का आवेग बहुत बढ़ गया था। जिसके कारण उनका पूरा शरीर गर्म होने लगा था।
गणेश विसर्जन की प्रथा
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश की तपन को शांत करने के लिए महर्षि वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर सबसे पहले गीली मिट्टी का लेप लगाया। इसके बाद उन्होंने भगवान गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया। इसके उपरांत ही भगवान गणेश की तपन शांत हुई। इस प्रकार गणेश विसर्जन की प्रथा शुरू हुई।
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