“पूजो” परंपरा

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जब वर्षा ऋतु विदा ले लेती है और शरद की आगमन की आहट हो जाती है। बंगाल के निवासी सालभर नवरात्रि की प्रतीक्षा करते रहते हैं। बंगाल में तो “पूजो” का मतलब ही होता है मां दुर्गा की पूजा। जब नीले आकाश में श्वेत बादल छा जाते हैं।

शारदोत्सव

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बंगाल में नवरात्रि के प्रथम पांच दिन शारदोत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । इस उत्सव के दौरान प्रत्येक बंगालियों के घर में सभी के लिए नए कपड़े व कुछ साथ सब्जा के सामान उपलब्ध किए जाते हैं।

मां दुर्गा की पूजा का प्रथम दिन षष्ठी

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षष्ठी तिथि मैं स्वर्ग लोक से मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, कार्तिक और गणेश चार बच्चों सहित चलचित्र के माध्यम से भूलोक में पधारती हैं। चलचित्र मंडप में अनुपम साज सज्जा के साथ मां दुर्गा विराजमान दिखाई पड़ती हैं।

पुष्पांजलि और भोग आरती

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बंगाल के निवासी सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन सुबह बड़े सवेरे उठकर मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए पूजा मंडप पर पहुंच जाते हैं।

धुनुचि नाच

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बंगाल में भोग आरती की सबसे बड़ी विशेषता धुनुचि नाच माना जाता है। इस नाच में बंगाल के सभी स्त्री पुरुष अकेले या समूह में अपने हाथों में धूप दान लेकर कलात्मक नृत्य करते हुए भाव विभोर होते हैं।

अष्टमी की संधी पूजा

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बंगाल में मंडप के आयोजक और ब्राह्मण अष्टमी के दिन संधी पूजा का आयोजन करते हैं। इस पूजा में 108 कमल के फूल मां दुर्गा को अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही 108 दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। यह संधी पूजा लगभग 1 घंटे तक चलती है।

सिंदूर का खेला

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विसर्जन के दिन सुहागन स्त्रियां मां दुर्गा के चरणों में सिंदूर अर्पित करती हैं। सुहागन स्त्रियां साल पर इसी सिंदूर का इस्तेमाल अपनी मांग भरने के लिए करते हैं। इसके उपरांत शुरू किया जाता है प्रसिद्ध सिंदूर खेला।