तीन की संख्या

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श्राद्ध पक्ष में तीन की संख्या का महत्वपूर्ण स्थान है। पितृ केवल पिता का सूचक माना जाता है। जबकि पितर में पिता पितामह और प्रपितामह तीनों लोग शामिल हो जाते हैं। मनुष्य के लिए इन्हीं तीन पूर्वजों का श्राद्ध करने का निर्देश दिया गया है।

तीन देवता 

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श्राद्ध करने के लिए तीन प्रमुख देव माने गए हैं, जो भूमि के देवता वसु, वायु के देवता रुद्र और आकाश के देवता आदित्य माने जाते हैं। श्राद्ध करने से यह तीनों संतुष्ट हो जाते हैं।

तीन पिंड

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श्राद्ध करने के लिए तीन पिंड बनाए जाते हैं, और यह तीन पिंड कर्मों से ही श्राद्ध पूर्ण माना जाता है। इन्हे पूजन, जलांजलि और यथाशक्ति दान कहा जाता है।

तीन संपत्ति

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श्राद्ध करने के उपरांत संतुष्ट पितृ अपनी संतान को तीन प्रकार की संपत्ति प्रदान करते हैं, जिन्हें दीर्घायु, स्वर्ग और यश कहा जाता है।

तीन शास्त्र

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सनातन धर्म की संस्कृति में श्राद्ध करने के अनेक प्रकार के शास्त्रों का वर्णन किया गया है। इसमें से तीन शास्त्रों को प्रमुख माना गया है। नित्य , नैमित्तिक और काम्य