रामचरितमानस में वर्णित लेख के अनुसार ‘ जब राजा भारत गुरु वशिष्ठ और अपने बंधुओ के साथ भगवान राम से मिलने चित्रकूट आए थे। तब गुरु वशिष्ठ ने श्री राम को उनके पिता महाराज दशरथ की मृत्यु का दु:खद समाचार सुनाया था। तब भगवान राम ने अपने पिता की श्रद्धांजलि के लिए उस दिन निर्जल व्रत किया था।
भगवान राम ने सबसे पहले मंदाकिनी नदी में स्नान किया था। फिर उन्होंने इंगुदी के गूदे में बेर मिलाकर पिंड बनाए थे। और उन पिंडों को कुशो पर रखकर अपने पिता महाराज से विनय याचना की थी। कि हे पिता महाराज आजकल यही हम लोगों का आहार है
भगवान राम द्वारा किए गए श्राद्ध से यह स्पष्ट हो जाता है, कि हमारे पास जो भी खाद्य सामग्री उपलब्ध है, उसी से अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध में मनुष्य की श्रद्धा प्रमुख मानी गई है।
भगवान राम ने पक्षीराज जटायु के देहांत हो जाने के उपरांत उन्हें जलांजलि प्रदान की थी। इन कथाओं से मनुष्य को प्रेरणा प्राप्त होती है। जो लोगों के प्रति संवेदना और श्रद्धा का भाव रखने के लिए प्रेरित करती है।