भारत की सनातन संस्कृति में अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति मनुष्य द्वारा किए गए श्रद्धापूर्वक महायज्ञ को कर्मकांड श्राद्ध के रूप में जाना जाता है। इस उत्सव में मनुष्य द्वारा मूल रूप से श्रद्धा देखी जाती है।
प्रारब्ध के कर्म बाद और पुनर्जन्म में आस्था रखने वाली भारतीय सनातन संस्कृति में यह लोक विश्वास अनादि काल से चल रहा है, कि हमारे पूर्वजों के दिवंगत होने के उपरांत भी उनका अस्तित्व बना रहता है। और वह अपनी संतान से जलांजलि की अपेक्षा बनाए रखते हैं।
भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति में पितरों का पिंडदान करने की व्यवस्था की गई है। इसमें मनुष्य अपने पितरों का बहती हुई नदियों में पंडित करते हैं।