भगवान श्री गणेश जी की स्थापना अपने आप में सबसे बड़ा ही मांगलिक उत्सव माना जाता हैं। भगवान गणेश जी के साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि जी की भी स्थापना की जाती हैं। ये सारी शक्तियां अपने नाम के अनुसार ही जीवन में खुशहाली लाती हैं।
गणपति जी की मूर्ति के लिए सिर्फ मिट्टी की जरूरत होती है। समान मिट्टी को भगवान गणेश का आकार देकर की गई पूजा, अर्चना का भी पूर्ण फल प्राप्त होता है। यदि आपको मिट्टी ना मिल पाए तो हल्दी की गांठ से भी गणेश जी की मूर्ति बनाई जा सकती है
भगवान श्री गणेश का जन्म ही सृजन का एक मुख्य प्रमाण है। माता पार्वती ने पुतला बनाकर उसमें प्राण डाले थे इस प्रकार श्री गणेश जी का सृजन किया गया था। भगवान गणेश उत्साह की स्वामी माने जाते हैं। इनका सीधा संबंध पृथ्वी से माना गया है।
भगवान गणेश अशुभ और मंगल का नाश करने वाले देवता माने गए हैं। इनके द्वारा की गई अशुभता के विनाश से ही जीवन में ऐश्वर्य व खुशहाली का संग्रह संभव हो पता है। इसलिए भगवान गणेश मंगल के समान शक्तिशाली देवता हैं।
श्री गणेश को ही शुभ मुहूर्त कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस काल में भगवान गणेश की उपस्थिति हो वह समय शुभ मुहूर्त बन जाता है। इसलिए सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा की जाती है। गणपति सभी दिशाओं के स्वामी माने जाते हैं।
भगवान गणेश के पास शुभ और मंगल करने वाली भगवान श्रीमान नारायण की शक्तियां व्याप्त है ।इसलिए भगवान गणेश को राजसी देवता भी माना जाता है। विष्णु जी के पास सृष्टि के पालन की जिम्मेदारी है जो श्री गणेश के माध्यम से ही पूरी हो पाती है।
गणेश उत्सव का शुभारंभ गणेश चतुर्थी से शुरू होकर विदाई तक पूरा माना जाता है। गणपति जी की विदाई करते समय उनकी प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो जन्म मृत्यु के चक्कर को पूर्ण कर देता है।