लोगों को लगता है कि बच्चों को तकनीकी का सहारा देना आवश्यक हो गया है। इसलिए लोग बच्चों को मोबाइल और टीवी का सहारा देते हैं। जिससे उन्हें कुछ ढूंढने में या देखने में मदद मिल पाएगी। लेकिन यही चीज अब चुनौतियां बनकर सामने खड़ी हो गई है।

अब बच्चों ने माता-पिता से बाहें फैला कर गले में लटकाना छोड़ दिया है। बच्चों का रात में कहानी सुना की ज़िद टीवी और मोबाइल की भेंट चढ़ गई है। यदि लोग बच्चों पर अपना दुलार लुटाते हैं, तो बच्चों का कहना होता है, वह उनके काम में डिस्टर्ब कर रहे हैं।

पहले के समय में बच्चे खेल के नए-नए नियम निकलते थे। आज के समय में उनके खिलौने अब धूल खा रहे हैं, बच्चों की जिज्ञासाएं खत्म हो चुकी हैं। बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति जैसे भैंस बनना, दुल्हन बनना, दूल्हा बनना, टीचर बनना खेलना यह सब अब खत्म हो चुके हैं। यहां तक की बच्चों में आपसी लगाव भी खत्म होता दिखाई देने लगा है।

मोबाइल और टीवी जैसी तकनीकियों ने सबको अपना गुलाम बना दिया है। हमें किसी भी तरीके की कोई जानकारी लेना है, तो हम तुरंत मोबाइल उठाकर ढूंढने लगते हैं। आज के समय में बच्चे खुश रहने के लिए टीवी और मोबाइल पर निर्भर हो गए हैं। जब भी बच्चों के माता-पिता बच्चों को टीवी या मोबाइल से दूर करते हैं, तो बच्चे लोटकर, चिल्ला कर शोर मचाने लगते हैं।