माता- पिता का आत्मबलिदान
कुछ विश्वास घाटियों के कारण उनके माता-पिता को अपना आत्म बलिदान करना पड़ा। उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। वीर छत्रसाल अपनी विरासत की रक्षा के लिए उग्र हो उठे।
भले भाई की उपाधि
घायल अवस्था में उनके प्यारे घोड़े ने उनकी रक्षा रातभर की। दूसरे दिन छत्रसाल के भाई अंगद राय को पहचान जाने पर ही घोड़े ने छत्रसाल को शिविर से बाहर ले जाने दिया। छत्रसाल के स्वस्थ होने पर उन्होंने अपनी घोड़े को “भले भाई” की उपाधि दी।
छत्रपति शिवाजी से भेंट
सफलता पाने के लिए वीर छत्रसाल छत्रपति शिवाजी से भेंट करने पहुंचे। छत्रपति शिवाजी ने उन्हें स्वाधीनता का मंत्र और अपनी तलवार देकर बुंदेलखंड में स्वतंत्रता का अलख जगाने को भेज दिया।
बुंदेलखंड पर आधिपत्य
मुगलों से हुए युद्ध में उन्होंने मुनव्वर खान, अब्दुल समद, हामिद खान, फौजदार इख्लास खान, किलेदार मोहम्मद अफजल, शाहकुली, दिलावर खान, रद्दुला खान और दिलेर खान आदि अनेक सेनापतियों को पराजित किया। धीरे-धीरे बुंदेलखंड पर महाराजा छत्रसाल का अधिपति हो गया।