शंकराचार्य जी बाल अवस्था से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे । उन्होंने एक वर्ष की आयु में ही बोलना शुरू कर दिया था । उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी
आदि शंकराचार्य का मन बाल्यकाल से ही सन्यास ग्रहण करने का था। उम्र बढ़ने के साथ उनकी संन्यास ग्रहण करने की इच्छा प्रबल होती गई।
मां की आज्ञा मिलने के बाद शंकराचार्य जी ने गुरु की तलाश में संपूर्ण भारत में यात्रा की। यात्रा के दौरान उन्हें अनेक आश्रम मठ मिले। जिसमे श्रृंगेरी और बतापी प्रमुख आश्रम थे
ओंकारेश्वर पहुंचने के बाद उन्हें यहां गुरु गोविंदपाद का आश्रम मिला, इस आश्रम में प्रवेश करते ही उनके मन को अपूर्व शांति मिली, इस आश्रम को अपने मन के अनुकूल समझ कर उन्होंने अपनी यात्रा को विराम दे दिया। इस समय उनकी आयु 12 वर्ष की थी।
एक समय की बात है जब ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी में भीषण बाढ़ आ गई थी । बाढ़ इतनी प्रबल थी कि उसने समस्त तटो को तोड़कर गांव में विनाश लीला आरंभ कर दी थी।