Adi Shankara : भारत देश में मध्य प्रदेश राज्य शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है । इस राज्य में भगवान श्री कृष्ण व सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की है । महर्षि संदीपनी का आश्रम मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित रहा है ।वहां भगवान श्री कृष्णा और सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी आदि शंकराचार्य जी ने भी ओंकारेश्वर में शिक्षा प्राप्त करके अपनी सिद्धांतों के प्रतिपादन के लिए पूरे भारत में भ्रमण किया था।
Adi Shankara :आदि शंकराचार्य भारत की एक महान दार्शनिक और धर्म प्रवर्तक के महंत थे । उन्होंने अपनी शिक्षा का ठोस आधार बनाकर भारतवर्ष में धर्म का प्रचार किया था। शंकराचार्य जी आध्यात्मिक प्रकाश के अद्भुत स्रोत बने हुए थे उन्होंने सारी भारत भूमि में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया था।
जन्म | योगी शंकरनाथ वैशाख शुक्ल पंचमी, 2631 युधिष्ठिर संवत (ईसा से १२३५ वर्ष पूर्व) कालड़ी गांव, चेर साम्राज्य वर्तमान में केरल, भारत |
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मृत्यु | अज्ञात (मान्यता है कि वे सशरीर शिवलोक गए थे) केदारनाथ, पाल साम्राज्य वर्तमान में उत्तराखण्ड, भारत |
गुरु/शिक्षक | योगी गोविन्द नाथ |
खिताब/सम्मान | शिवावतार, शंकराचार्य योगी, आदिगुरु, श्रीमज्जगदगुरु, धर्मचक्रप्रवर्तक, यतिचक्र चुरामणि, धर्मसम्राट, भगवान |
कथन | अहं ब्रह्मास्मि, प्रज्ञानं ब्रह्म, तत्त्वमसि, ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | अद्वैत वेदान्त, नाथ संप्रदाय का साहित्य |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यक्तिगत परिचय
Adi Shankara : शंकराचार्य जी बाल अवस्था से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे । उन्होंने एक वर्ष की आयु में ही बोलना शुरू कर दिया था । उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी जो बात एक बार सुन लेते थे उसे पुनः उसी तरीके से दोहरा देते थे जिस तरीके से सुना था। इन विलक्षण शक्तियों के आधार पर 3 वर्ष में ही उनका पाटी संस्कार किया गया था।
Adi Shankara : कुछ समय बाद उनके पिता का देहांत हो गया इसके बाद उनका लालन पालन उनकी मां ने ही किया। 5 वर्ष की आयु में ही शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्हें गुरुकुल भेजा गया । बहुत ही जल्दी अवस्था में उन्होंने शास्त्रों की शिक्षा में प्रवीणता हासिल कर ली । गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने घर पहुंचे।
सन्यास में कदम
Adi Shankara : आदि शंकराचार्य का मन बाल्यकाल से ही सन्यास ग्रहण करने का था। उम्र बढ़ने के साथ उनकी संन्यास ग्रहण करने की इच्छा प्रबल होती गई। परंतु शंकराचार्य को अपनी माता से इतना लगाव था कि वह उनसे अपनी इच्छा प्रकट नहीं कर पा रहे थे। एक बार जब वह नदी में स्नान कर रहे थे तो अचानक ही मगरमच्छ ने उनके पैरों को पकड़ लिया था। वह काफी चीखे चिल्लाते रहे, तट पर बैठी उनकी मां यह दृश्य देखकर काफी विचलित हो गई उनकी नैनों में अश्रु धारा बहने लगी।
Adi Shankara : अचानक ही शंकराचार्य के मुख से निकल गया कि ” मां यदि आप मुझे संस्कार की अनुमति दे देती हैं तो मेरा जीवन बच सकता है।” शंकराचार्य के प्राण रक्षा के लिए उनकी मां ने अनचाहे मन से ही उन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दे दी। ऐसा माना जाता है की मगरमच्छ ने भी उन्हें मुक्त कर दिया था।
गुरु की खोज
Adi Shankara : मां की आज्ञा मिलने के बाद शंकराचार्य जी ने गुरु की तलाश में संपूर्ण भारत में यात्रा की। यात्रा के दौरान उन्हें अनेक आश्रम मठ मिले। जिसमे श्रृंगेरी और बतापी प्रमुख आश्रम थे
वातापी से निकालकर वह गोदावरी पार करते हुए दंडकारण्य आश्रम पहुंचे। दंडकारण्य से इंद्रावती और महा नदी पार करते हुए अमरकंटक पहुंचे। अमरकंटक में नर्मदा नदी के परिक्रमा करते हुए वह ओंकारेश्वर पहुंचे ।
ओंकारेश्वर
Adi Shankara : ओंकारेश्वर पहुंचने के बाद उन्हें यहां गुरु गोविंदपाद का आश्रम मिला, इस आश्रम में प्रवेश करते ही उनके मन को अपूर्व शांति मिली, इस आश्रम को अपने मन के अनुकूल समझ कर उन्होंने अपनी यात्रा को विराम दे दिया। इस समय उनकी आयु 12 वर्ष की थी।
योग शक्ति
Adi Shankara : एक समय की बात है जब ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी में भीषण बाढ़ आ गई थी । बाढ़ इतनी प्रबल थी कि उसने समस्त तटो को तोड़कर गांव में विनाश लीला आरंभ कर दी थी। इस विनाश लीला में अनेक गांव बह गए थे, अनेक मकान ढह गए थे । समस्त ग्राम वासियों में त्राहि त्राहि मच गया था। शंकराचार्य को यह वेदना देखी नहीं गई। उन्होंने ग्राम वासियों को इस विनाश से बचाने के लिए ” नर्मदा अष्टक” की रचना की और अपनी योग शक्ति से नर्मदा का जल अपने कमंडल में भर लिया।
महिष्मति आगमन
Adi Shankara : ओंकारेश्वर के बाद शंकराचार्य जी विद्वान कुमारिल भट्ट से मिलने काशी गए । महंत भट्ट उसे समय समाधि में विराजमान थे। समाधि टूटने के बाद उन्होंने शंकराचार्य जी को देखा और उनसे शास्त्रार्थ करने की इच्छा प्रकट की। इस पर शंकराचार्य नाराज हो गए उनकी नाराजगी को देखते हुए महर्षि भट्ट ने उन्हें महास्मती जाने की सलाह दी।
Adi Shankara :माहिष्मती के संत मंडल मिश्र कुमारिल भट्ट के शिष्य थे। वह कर्म मीमांसा के आदित्य विद्वान थे। शंकराचार्य मंडल मिश्र से मिलने उनके निवास स्थान पहुंचे। मंडल मिश्र को समझते देर ना लगी की शंकराचार्य उनसे शास्त्रार्थ के लिए आए हैं। शास्त्रार्थ लिए के मंडल मिश्र पत्नी भारती को निर्णायक बनाया गया। भारती अद्वितीय विदुषी और विलक्षण प्रतिभा की धनी थी। उन्होंने घोषणा की की हारने वाले को जीतने वाले का शिष्य बनाया जाएगा। इस शास्त्रार्थ में मंडल मिश्र पराजित हुए। और उन्होंने शंकराचार्य का शिष्यत्व बनना स्वीकार किया।
उज्जयिनी आगमन
Adi Shankara :अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान द्वितीय चरण में शंकराचार्य उज्जयिनी आए। उज्जयिनी उस समय कापालिकाओ का केंद्र बन गया था। समूचे भारत में कापालिको का विकास हो गया था। शंकराचार्य को कापालिकाओं के अमर्यादित आचरण देखकर बहुत दुख हुआ। शंकराचार्य में कापालिक से शास्त्रार्थ करने का निश्चय किया । क्रकच नमक कापालिक शास्त्रार्थ में शंकराचार्य से हार गया।
पीठों की स्थापना
Adi Shankara : आदि शंकराचार्य के महान संगठन कार्यकर्ता थे । उन्होंने अटक से लेकर भटक तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान उन्होंने चार पीठों की स्थापना की थी । यह 4 पीठ क्रमशः बद्रीनाथ धाम, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारका के नाम से विख्यात है।
Adi Shankara : उपासना
Adi Shankara : शंकराचार्य भगवान शिव के उपासक थे उन्होंने शिव मानस स्तुति की रचना की थी।
निष्कर्ष
Adi Shankara : आदि शंकराचार्य महान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपना जीवन समाज और भारत के लिए समर्पित कर दिया। आज संपूर्ण भारत वर्ष में उनके द्वारा चलाए जा रहे मठों में आचार्य की नियुक्ति की जाती है। 32 वर्ष की आयु में ही उन्होंने सारे भारत को अपने ज्ञान और योग शक्ति से विजय प्राप्त कर ली थी।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना किसने की थी?
उत्तर- आदि शंकराचार्य के महान संगठन कार्यकर्ता थे । उन्होंने अटक से लेकर भटक तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान उन्होंने चार पीठों की स्थापना की थी । यह 4 पीठ क्रमशः बद्रीनाथ धाम, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारका के नाम से विख्यात है।
प्रश्न- शंकराचार्य किसके उपासक थे ?
उत्तर- शंकराचार्य भगवान शिव के उपासक थे उन्होंने शिव मानस स्तुति की रचना की थी।
प्रश्न- शंकराचार्य के चार पीठ कौन से हैं?
उत्तर- यह 4 पीठ क्रमशः बद्रीनाथ धाम, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारका के नाम से विख्यात है।
प्रश्न- शंकराचार्य किसकी पूजा करते थे?
उत्तर- भगवान शिव
प्रश्न- आदि शंकराचार्य के गुरु का क्या नाम था?
उत्तर- योगी गोविन्द नाथ
प्रश्न- आदि शंकराचार्य को किसने हराया था?
उत्तर- मंडल मिश्र
प्रश्न- आदि शंकराचार्य गुरु की खोज करने कहा गए थे?
उत्तर- मां की आज्ञा मिलने के बाद शंकराचार्य जी ने गुरु की तलाश में संपूर्ण भारत में यात्रा की। यात्रा के दौरान उन्हें अनेक आश्रम मठ मिले। जिसमे श्रृंगेरी और बतापी प्रमुख आश्रम थे
वातापी से निकालकर वह गोदावरी पार करते हुए दंडकारण्य आश्रम पहुंचे। दंडकारण्य से इंद्रावती और महा नदी पार करते हुए अमरकंटक पहुंचे। अमरकंटक में नर्मदा नदी के परिक्रमा करते हुए वह ओंकारेश्वर पहुंचे ।
प्रश्न- शंकराचार्य का सिद्धांत क्या था?
उत्तर- आदि शंकराचार्य महान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपना जीवन समाज और भारत के लिए समर्पित कर दिया। आज संपूर्ण भारत वर्ष में उनके द्वारा चलाए जा रहे मठों में आचार्य की नियुक्ति की जाती है। 32 वर्ष की आयु में ही उन्होंने सारे भारत को अपने ज्ञान और योग शक्ति से विजय प्राप्त कर ली थी।
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