पौराणिक साहित्य में नौ देवियों के नौ नाम में सबसे प्रथम नाम मां शैलपुत्री का लिया जाता है। मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री मां भगवती पार्वती है। माता शैलपुत्री का भव्य मंदिर मोक्ष नगरी काशी में वरुणा सरिता के निकट स्थित है।
मां ब्रह्मचारिणी सच्चिदानंद स्वरूप है। जिनका स्वभाव ब्रह्म स्वरुप है उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इनका विशाल मंदिर काशी में स्थित है। सदानीरा मां गंगा के किनारे बालाजी घाट पर स्थित मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर सुखकर्ता, समृद्धिदायक और मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
भगवती स्वरूप मां चंद्रघंटा चंद्रमा के समान शीतलता और ज्ञान प्रकाश करती हैं। मां चंद्रघंटा के मस्तिष्क पर घंटे के आकार का चंद्रमा सुशोभित है। त्रिवेणी संगम की नगरी प्रयागराज में मां चंद्रघंटा देवी का मंदिर स्थित है।
नवरात्रि के चतुर्थ दिवस की देवी हैं मां कूष्मांडा। मां कुष्मांडा का भव्य और विशाल मंदिर कानपुर जिले के घाटमपुर कस्बे में स्थित है। जहां मां देवी पिंडी स्वरूप विराजमान है। जिनके दो मुख हैं।
भगवान शिव और भगवती पार्वती के पुत्र षठमुख धारी कार्तिकेय स्कंद कहलाते हैं। मां भगवती अपने पुत्र कार्तिकेय को अपने गोद में लेकर विराजमान है। जिन्हें मां स्कंद माता के नाम से जाना जाता है।
महर्षि कात्यायन तप करके भगवती देवी को प्रसन्न किया था। और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त किया था। जिन्हें माता कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। माता कात्यानी की आराधना श्री राधा रानी ने कृष्ण भगवान को पति स्वरूप पाने के लिए की थी।
भगवती देवी के 7वे स्वरूप के रूप में मां कालरात्री को जाना जाता है। मां कालरात्रि स्वरूप में भगवती मां पार्वती ने कई असुरों का संहार किया था। इसलिए इस दिन में उनकी प्रतिमा की उग्र स्वरूप में पूजी जाती है। वाराणसी में मां कालरात्रि का भव्य और विशाल मंदिर स्थित है।
नवरात्रि के अस्त्र रात्रि के आठवें स्वरूप में भगवती गौरी अत्यंत शांत मुद्रा और रूप गौर वर्ण में स्थित हैं। पुराणों की कथा के अनुसार मां भगवती ने महादेव को वर के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस तप के कारण उनका स्वरूप कृष्ण वर्ण हो गया था।
मां सिद्धिदात्री समस्त सिद्धियों की दात्री हैं। मां अपने चतुर्भुज रूप में कमल पुष्प पर विराजमान है। इनका भाव और विशाल मंदिर छिंदवाड़ा में स्थित है।